इस तरह जन्मा ब्रह्मांड
वैज्ञानिक जानने में लगे हैं कि इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई? वे धर्म की बातों पर न तो संदेह करते हैं और न विश्वास, सिर्फ खोज करते हैं, लेकिन यदि हम यह मानकर ही खोज करते हैं कि ऐसा हुआ होगा तो वह पूर्ण सत्य नहीं माना जाएगा, क्योंकि यदि आपने यह मान ही लिया है कि ईश्वर परम तत्व है, तब बस उसके होने के तथ्य जुटाना हैं तो फिर आप समझो कि भटक गए। खोजी व्यक्ति कुछ भी मानकर नहीं चलता, सिर्फ खोज में लग जाता है।
वैज्ञानिक मान्यता : लगभग 14 अरब साल पहले ब्रह्मांड नहीं था, सिर्फ अंधकार था। अचानक एक बिंदु की उत्पत्ति हुई। फिर वह बिंदु मचलने लगा। फिर उसके अंदर भयानक परिवर्तन आने लगे। इस बिंदु के अंदर ही होने लगे विस्फोट। शिव पुराण मानता है कि नाद और बिंदु के मिलन से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई।
वैज्ञानिक मान्यता : लगभग 14 अरब साल पहले ब्रह्मांड नहीं था, सिर्फ अंधकार था। अचानक एक बिंदु की उत्पत्ति हुई। फिर वह बिंदु मचलने लगा। फिर उसके अंदर भयानक परिवर्तन आने लगे। इस बिंदु के अंदर ही होने लगे विस्फोट। शिव पुराण मानता है कि नाद और बिंदु के मिलन से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई।
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अब प्रश्न यह है कि क्या सच में ही ऐसा हुआ? क्या ऊर्जा से आकाश, हवा, पानी, ग्रह, तारे, पृथ्वी और इन्सान बने? कैसे तय हुई दिशाएँ, कहाँ से आया समय? कैसे बना पदार्थ? किसने बनाया इसे? किसने किया महाविस्फोट। सच क्या है, यह कोई नहीं जानता।
महामशीन का महाप्रयोग : वैज्ञानिक कहते हैं कि महामशीन-लार्ड हेड्रॉन कोलाइडर के महाप्रयोग से यह रहस्य खुलने का अनुमान है कि आखिर द्रव्य (मैटर) क्या है? और उनमें द्रव्यमान (भार) कहाँ से आता है? क्या द्रव्य को उस प्रयोग से देख सकेंगे जैसा पहले कभी नहीं देखा गया। शायद वह एक सेकंड का एक अरबवाँ हिस्सा रहा होगा, जब ब्रह्मांड का निर्माण हुआ होगा और संभावना है कि उस क्षण को देख सकेंगे।
ब्रह्मांड उत्पत्ति का हिंदू सिद्धांत :
'सृष्टि के आदिकाल में न सत् था न असत्, न वायु थी न आकाश, न मृत्यु थी न अमरता, न रात थी न दिन, उस समय केवल वही था जो वायुरहित स्थिति में भी अपनी शक्ति से साँस ले रहा था। उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं था।' -ऋग्वेद
ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा- यह तीन तत्व ही हैं। ब्रह्म शब्द ब्रह् धातु से बना है, जिसका अर्थ 'बढ़ना' या 'फूट पड़ना' होता है। ब्रह्म वह है, जिसमें से सम्पूर्ण सृष्टि और आत्माओं की उत्पत्ति हुई है, या जिसमें से ये फूट पड़े हैं। विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का कारण ब्रह्म है। -उपनिषद
जिस तरह मकड़ी स्वयं, स्वयं में से जाले को बुनती है, उसी प्रकार ब्रह्म भी स्वयं में से स्वयं ही विश्व का निर्माण करता है। ऐसा भी कह सकते हैं कि नृत्यकार और नृत्य में कोई फर्क नहीं। जब तक नृत्यकार का नृत्य चलेगा, तभी तक नृत्य का अस्तित्व है, इसीलिए हमने अर्धनारीश्वर नटराज को समझा।
इसे इस तरह भी समझें 'पूर्व की तरफ वाली नदियाँ पूर्व की ओर बहती हैं और पश्चिम वाली पश्चिम की ओर बहती है। जिस तरह समुद्र से उत्पन्न सभी नदियाँ अमुक-अमुक हो जाती हैं किंतु समुद्र में ही मिलकर वे नदियाँ यह नहीं जानतीं कि 'मैं अमुक नदी हूँ' इसी प्रकार सब प्रजा भी सत् से उत्पन्न होकर यह नहीं जानती कि हम सत् से आए हैं। वे यहाँ व्याघ्र, सिंह, भेड़िया, वराह, कीट, पतंगा व डाँस जो-जो होते हैं वैसा ही फिर हो जाते हैं। यही अणु रूप वाला आत्मा जगत है।-छांदोग्य
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परमेश्वर से आकाश अर्थात जो कारण रूप 'द्रव्य' सर्वत्र फैल रहा था उसको इकट्ठा करने से अवकाश उत्पन्न होता है। वास्तव में आकाश की उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि बिना अवकाश के प्रकृति और परमाणु कहाँ ठहर सके और बिना अवकाश के आकाश कहाँ हो। अवकाश अर्थात जहाँ कुछ भी नहीं है और आकाश जहाँ सब कुछ है।
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